पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है...
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाघ तो सारा जाने है
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत, एक से वाक़िफ़, इनमें नहीं
और तो सब कुछ तंज़-ओ-किनाया, रम्ज़-ओ-इशारा, जाने है
क्या क्या फ़ितने सर पर उसके, लाता है, माशूक अपना
जिस बेदिल बेताब-ओ-तवां को, इश्क का मारा जाने है
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-इ-गोश को बाले तक
उस को फलक चश्म-इ-माह-ओ-खुर के पुतली का तारा जाने है
आगे उस मुताकब्बिर के हम खुदा खुदा किया करते हैं
कब मौजूद खुदा को वो मघरूर खुद-आरा जाने है
आशिक सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ान को इश्क में उस के अपना वारा जाने है
क्या ही शिकार-फरेबी पर मघरूर है वो सय्याद बच्चा
तैर उड़ते हवा मैं सारे अपनी उस्सारा जाने है
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाकिफ इनमें नहीं
और तो सब कुछ तंज़-ओ-किनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है
आशिक तो मुर्दा ही हमेशा जी उठाता है देखे उसे
यार के आ जाने को यकायक उम्र दोबारा जाने है
रखानों से दीवार-इ-चमन के मूंह को ले हैछिपा यानी
उन सुराखों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है
तशना-इ-खून है अपना किअना मीर भी नादाँ तल्खीकाश
दम-दार आब-इ-तेघ को उस के आब-इ-गंवारा जाने है