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फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था...

Song: Faasle Aise Bhi Honge, Yeh Kabhi Socha Na Tha
Singers: Ghulam Ali, गुलाम अली,  ग़ज़ल, ग़ज़लें,
Song Lyricists: Adeem Hashmi, अदीम हाशमी












फ़ासले, ऐसे भी होंगे, ये कभी, सोचा न था
सामने, बैठा था मेरे, और वो, मेरा न था।

वो कि ख़ुशबू की तरह, फैला था, मेरे चार सू
मैं उसे, महसूस, कर सकता था, छू, सकता न था।

रात भर पिछली ही आहट, कान में, आती रही
झाँक कर, देखा गली में, कोई भी, आया न था।

ख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर, अजनबीयत, के गिलाफ़
वर्ना कब एक दूसरे को, हमने, पहचाना न था।

याद कर के और भी, तकलीफ़, होती, थी’अदीम’
भूल जाने के सिवा, अब कोई भी, चारा न था।

शब्दार्थ:

चार सू = चारों दिशाओं में
गिलाफ़ = आवरण
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