कभी यूँ भी आ मेरी आँख में...
गज़ल/Ghazal: Kabhi Yun Bhi Aa Meri Aankh Mein...
चित्रपट / Movie/Album: Sajda (1991) By Jagjit Singh
संगीतकार / Music Director: Jagjit Singh (जगजीत सिंह)
गीतकार / Lyricist: बशीर बद्र (Bashir Badr)
गायक / Singer: Jagjit Singh (जगजीत सिंह)
Music Label: His Master's Voice (HMV), Saregama
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो
मेरे बाज़ुओं में थकी थकी , अभी महव-ए-ख़्वाब है चांदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चांदनी
न बुझे ख़राबे की रोशनी, कभी बेचराग़ ये घर न हो
वो फ़िराक़ हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो
कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, दिल-ओ-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो
कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कभी डर न हो
कभी यूँ मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो
वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो
तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो
कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो
शब्दार्थ
- नवाज़ - कृतार्थ कर दे, कृपा या दया करने वाला
- सहर - सुबह
- रहीम-ओ-करीम - दया और कृपा करनेवाला
- सिफ़त - सदगुण, गुण, स्वाभाव, विशेषता, लक्षण
- अता - प्रदान करे
- महव-ए-ख़्वाब - सपनों में खोई हुई
- फ़िराक़ - विरह
- विसाल - मिलन
- शब - रात
- हबीब - प्रिय, मित्र, दोस्त