Song: Suna Hai Log Use Aankh Bhar Ke Dekhte Hain
Singers: Asif Mehdi (आसिफ मेहदी)
Song Lyricists: Ahmed Faraz (अहमद फ़राज़)
शब्दार्थ:
रब्त = सम्बन्ध, मेल
गाहक = खरीददार
चश्म-ए-नाज़ = गर्वीली आँखें
शगफ़ = जूनून, धुन
मोइज़े = जादू
बाम-ए-फलक = आसमान की छत
काकुलें = जुल्फें
हश्र = क़यामत
ग़ज़ाल = हिरन
दश्तभर = पूरा जंगल
स्याह चश्मगी = काली आँखें
सुरमाफ़रोश = काजल बेचने वाले
तमसाल = मिसाल, उपमा
ज़बीं = माथा
सादादिल = साफ़ दिल वाले
कबायें = कपड़े
रह-रवां-ए-तमन्ना = राहगीरों की तमन्ना
सबिस्तां = शयनकक्ष
मुत्तसिल = पास, बगल में
बहिश्त = स्वर्ग
मकीं = किरायेदार
बे-पैरहन = बिना कपड़ो के
दर-ओ-दीवार = दरवाज़े और खिड़कियाँ
गर्दिशें = विपत्ति
तवाफ़ = प्रदक्षिणा
मुबालगे = अत्त्युक्ति, बहुत बढ़ा चढ़ा कर कही हुई बात
ताबीर = परिणाम, फल
Singers: Asif Mehdi (आसिफ मेहदी)
Song Lyricists: Ahmed Faraz (अहमद फ़राज़)
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं।
सुना है रब्त है उसको ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बर्बाद कर के देखते हैं।
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं।
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोइज़े अपने हुनर के देखते हैं।
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं।
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं।
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनूं ठहर के देखते हैं।
सुना है रात से बढ़ कर है काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं।
सुना है हश्र है उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उसको हिरन दश्तभर के देखते हैं।
सुना है उस की स्याह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आँख भर के देखते हैं।
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते हैं।
सुना है आइना तमसाल है ज़बीं उसकी
जो सादादिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं।
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
की फूल अपनी कबायें क़तर के देखते हैं।
बस इक निगाह में लुटता है काफ़िला दिल का
सो रह-रवां-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं।
सुना है उसके सबिस्तां से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं।
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं।
रुकें तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चलें तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं।
कहानियाँ ही सही, सब मुबालगे ही सही
अगर ये ख़्वाब है, ताबीर कर के देखते हैं।
अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
‘फ़राज़’ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं।
शब्दार्थ:
रब्त = सम्बन्ध, मेल
गाहक = खरीददार
चश्म-ए-नाज़ = गर्वीली आँखें
शगफ़ = जूनून, धुन
मोइज़े = जादू
बाम-ए-फलक = आसमान की छत
काकुलें = जुल्फें
हश्र = क़यामत
ग़ज़ाल = हिरन
दश्तभर = पूरा जंगल
स्याह चश्मगी = काली आँखें
सुरमाफ़रोश = काजल बेचने वाले
तमसाल = मिसाल, उपमा
ज़बीं = माथा
सादादिल = साफ़ दिल वाले
कबायें = कपड़े
रह-रवां-ए-तमन्ना = राहगीरों की तमन्ना
सबिस्तां = शयनकक्ष
मुत्तसिल = पास, बगल में
बहिश्त = स्वर्ग
मकीं = किरायेदार
बे-पैरहन = बिना कपड़ो के
दर-ओ-दीवार = दरवाज़े और खिड़कियाँ
गर्दिशें = विपत्ति
तवाफ़ = प्रदक्षिणा
मुबालगे = अत्त्युक्ति, बहुत बढ़ा चढ़ा कर कही हुई बात
ताबीर = परिणाम, फल